भारत में व्यापार करनाइ

1 भारत मे व्यापार शुरू करैत

व्यापार उद्यम एकटा आर्थिक संस्था अछि जे नाफा कमाए के लेल आ सम्पत्ति आर्जन करबाक ले वस्तु आ सेवा के उत्पादन आ / वा वितरण मे संलग्न रहैत अछि. अई मे नम्हर संख्या मे गतिविधिसब शामेल अछि जकरा दू व्यापक श्रेणी अर्थात् उद्योग आ वाणिज्य मे वर्गीकृत कएल जा सकैत अछि. हरेक उद्यमीक लक्ष्य व्यवसाय शुरू करब आ ओकरा एकटा सफल उद्यम बनाएब अछि.

 

उद्योग निदेशालय विभिन्न राज्यक मे नोडल एजेंसियॉ छै जे संबंधित राज्य मे औद्योगिक इकाई शुरू करय मे नव उद्यमी कें सहायता आ मार्गदर्शन करय छै. इ उद्योगक कें इनपुट कें लेल उद्योग आ अन्य एजेंसियॉ कें बीच इंटरफेस प्रदान करयत छै आ उद्यमी कें एकहि बिंदु पर विभिन्न विभागक सं अलग-अलग औद्योगिक मंजूरी आ मंजूरी प्राप्त करय मे सक्षम बनायत छै-एकल खिड़की.

2 व्यवसाय मे लगानी

व्यवसाय वित्त के तात्पर्य कोनो उद्यमी द्वारा ओकर व्यावसायिक संगठनसँ सम्बन्धित विभिन्न गतिविधि करबाक लेल आवश्यक कोष आ मौद्रिक सहायतासँ अछि. व्यावसायिक जीवन चक्रक हरेक चरण मे ई आवश्यक होइत हछि. हालांकि कोनों उद्यम कें जरूरत कें पूंजी कें राशि व्यवसाय कें प्रकृति आ आकार पर निर्भर करय छै, मुदा ओकर समय पर आ पर्याप्त आपूर्ति कोनों रूप कें औद्योगिक सेटअप (चाहे ओ छोट, मध्यम या पैघ) कें लेल अनिवार्य छै. भारत मे वित्तीय प्रणाली कें मुद्रा बाजार आ पूंजी बाजार मे वर्गीकृत कैल जा सकय छै. मुद्रा बाजारक सञ्चालन के विनियमित करबाक लेल, भारतीय रिजर्भ बैंक (आरबिआई) सर्वोच्च निकाय अछि, जखन कि भारतीय प्रतिभूति आ विनिमय बोर्ड (एसइबिआई) पूँजी बाजार के काज के निगरानी करैत अछि.

प्रणाली के मुख्य घटक जकरा माध्यमसँ उद्यमी अपन उद्यम के लेल पैसा जुटा सकैत अछि: -

एगो) उद्यम पूंजी: वेंचर कैपिटल ओय छोट आ मध्यम आकार कें फर्म कें लेल वित्त कें एकटा महत्वपूर्ण स्रोत छै वेंचर कैपिटल मे विभिन्न क्षेत्रक कें पेशेवर शामिल छै. ओ परियोजनाक कें जांच कें बाद अइ फर्मक कें फंड (जेकरा वेंचर कैपिटल फंड कें नाम सं जानल जायत छै) उपलब्ध कराबैत छै.

ब) बैंक: बैंक एकटा एहन संस्था छै जे जनता सं पैसा कें जमा स्वीकार करएयत छै, जे मांग पर वापस कैल जा सकएय छै आ चेक सं निकालल जा सकएय छै. ऐहन जमा कें उपयोग दोसर कें उधार देवय कें लेल कैल जायत छै आ कोनों तरह कें अपन व्यवसाय कें वित्तपोषण कें लेल नहि. ऋण शब्द मे उधारकर्ताक कें प्रत्यक्ष ऋण आ खुला बाजार प्रतिभूतियक मे निवेश कें माध्यम सं अप्रत्यक्ष ऋण दूनू शामिल छै. 

स) सरकारी योजना सब: एकटा उद्यमी कें न केवल अपन व्यवसाय कें स्थापना कें लेल, बल्कि सफल संचालन कें संग-संग औद्योगिक इकाई कें नियमित उन्नयन/ आधुनिकीकरण कें लेल सेहो धन कें निरंतर प्रवाह कें आवश्यकता होयत छै. एहि आवश्यकता कें पूरा करय कें लेल सरकार (केंद्र आ राज्य दूनू स्तर पर) बैंक आ वित्तीय संस्थाक कें स्थापना जैना कईटा कदम उठा रहल छै; विभिन्न नीति आ योजना आदिक निर्माण करब. ऐहन सबटा उपाय विशेष रूप सं छोट आ मध्यम उद्यमक कें बढ़ावा आ विकास कें दिशा मे केंद्रित छै

डी) गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी: गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) भारतीय वित्तीय प्रणाली केरऽ एगो महत्वपूर्ण खंड के रूप म॑ तेजी स॑ उभर॑ लगलऽ छै. इ संस्थाक कें एकटा विषम समूह छै (वाणिज्यिक आ सहकारी बैंकक कें अलावा) जे विभिन्न तरह सं वित्तीय मध्यस्थता करयत छै, जेना जमा स्वीकार करनाय, ऋण आ अग्रिम देनाय, पट्टा देनाय, किराया पर खरीदनाय, आदि. ओ सब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप सं जनता सं धन जुटाबैत छथि आ अंतिम खर्च करय वाला के उधार दैत छथिन्ह. 

ई) वित्तीय संस्थान: भारत सरकार न॑ अर्थव्यवस्था केरऽ विभिन्न क्षेत्रऽ म॑ ऋण केरऽ पर्याप्त आपूर्ति प्रदान करै के उद्देश्य स॑ देश म॑ वित्तीय संस्थानऽ के एगो सुविकसित संरचना के विकास करलकै. इ वित्तीय संस्थाक कें मोटा-मोटी अखिल भारतीय संस्थाक आ राज्य स्तरीय संस्थाक मे वर्गीकृत कैल जा सकय छै, जे ओकर संचालन कें भौगोलिक कवरेज कें आधार पर होयत छै. राष्ट्रीय स्तर पर ओ उचित ब्याज दर पर दीर्घ आ मध्यम अवधि कें ऋण प्रदान करय छै. 

3 व्यवसायक लेल कानुनी विचार

कानूनी पक्षा कोनो भी देश मे सफल व्यवसायक वातावरण के अनिवार्य हिस्सा अछि. ओ सभ नीतिगत ढांचा आ ओहि देशके सरकारी ढांचाके माइंड-सेटके प्रतिबिम्बित करैत अछि. भारतमे, कंपनी सS संबंधित सभ पक्षके नियंत्रित करय बला सभ सS महत्वपूर्ण कानून कंपनी अधिनियम, 1956 छी. एहिमे एकटा कंपनीके गठन, निदेशक सभ आ प्रबंधक सभक शक्ति आ दायित्व सभ, पूंजी संग्रह, कंपनीक बैठकके आयोजन, कंपनी खाताके रखरखाव आ लेखा परीक्षा, कंपनी मामला सभके निरीक्षण आ जांचक शक्ति, पुनर्निर्माण आ एकटा कंपनीके समामेलन, एकटा कंपनीके समापन सS संबंधित प्रावधान सेहो सम्मिलित अछि.

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, एकटा आओर कानून छी जे कोनो कंपनीके सभटा लेनदेनके नियंत्रित करैत अछि. इ अनुबंधक कें गठन आ प्रवर्तनीयता सं संबंधित सामान्य सिद्धांतक कें निर्धारित करयत छै; कोनों समझौता आ प्रस्ताव कें प्रावधानक कें नियंत्रित करय वाला नियम; क्षतिपूर्ति आ गारंटी, जमानत आ प्रतिज्ञा आ एजेंसी सहित विभिन्न प्रकार कें अनुबंध. अई मे अनुबन्ध के उल्लंघनसँ सम्बन्धित प्रावधान सेहो शामेल अछि.

अन्य प्रमुख कानूनसब अछि: - उद्योग (विकास आ नियमन) ऐन 1951; ट्रेड युनियन ऐन; प्रतिस्पर्धा ऐन, 2002; मध्यस्थता आ मिलापत्र ऐन, 1996; विदेशी विनिमय व्यवस्थापन ऐन (एफइएमए), 1999; बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार सम्बन्धी कानूनसब; सँगहि श्रम कल्याणसँ सम्बन्धित कानूनसब.

4 भारत मे व्यवसायक कर


भारत के पास पूर्ण विकसित कर संरचना अछि. कर आ भन्सार महसुल लगएबाक अधिकार के भारतीय संविधान के प्रावधान के आधार पर सरकार के तीनु तह मे वितरित कएल गेल अछि. केन्द्र सरकार के लाग'वला मुख्य कर / कर्तव्य लागू करबाक अधिकार अछि: -

a) आयकर (कृषि आय के कर के छोड़ि क', जे राज्य सरकार लगा सकैत अछि)

b) सीमा शुल्क, केन्द्रीय उत्पादन शुल्क आ बिक्री कर तथा

c) सेवा कर

राज्य सरकारद्वारा लगाएल गेल मुख्य कर अछि: -

a) बिक्री कर (अपना राज्य भरिमे समानके बिक्री पर कर),

बी) स्टांप ड्यूटी (संपत्तिके हस्तांतरण पर शुल्क),

सी) राज्य उत्पाद शुल्क (मदिराके उत्पादन पर शुल्क),

डी) भूमि राजस्व (कृषि / गैर-कृषि उद्देश्य सभक लेल उपयोग होई बला भूमि पर लगान),

ई) मनोरंजन पर ड्यूटी आओर पेशा आ कॉलिंग पर कर.

 

स्थानीय निकायसब के लगान देबाक अधिकार अछि: -

a) सम्पत्ति (भवन, आदि) पर कर,

b) अक्ट्रोई (स्थानीय निकायसभक क्षेत्र भितर उपयोग / खपत के लेल समान के प्रवेश कर),

c) बजार पर कर आ

d) पानिक आपूर्ति, निकास आदि जकाँ सुविधाक लेल कर/प्रयोगकर्ता शुल्क.

 

थप जानकारीक लेल, अहाँ देख सकैत छी: -

क) व्यक्ति पर कर - लिङ्क

ख) साझेदारी के कर - लिङ्क

ग) कॉरपोरेट के कर - लिङ्क

घ) अन्य रूपक व्यवसायिक संस्थाक पर कर - लिङ्क

ङ) सेवा कर - लिङ्क

च) टीडीएस, टीसीएस, टैन - लिङ्क